Garhwali Rani Karnavati : गढ़वाल की रानी कर्णावती - जिहादी कनेक्शन

Garhwali Rani Karnavati
Garhwali Rani Karnavati

Garhwali Rani Karnavati :
जानिए कैसे छोटे से उत्तराखंड की इस रानी ने।  मुगल साम्राज्य को छटी का दूध याद दिला दिया था। किस्से कहानियों के दौर मैं।  गढ़वाल की रानी कर्णावती। कभी ज्यादा उजागर नहीं हो सकीं। जबकि इनके शौर्य , वीरता के किस्से अनेक हैं। रानी कर्णावती को नक्कटी रानी के नाम से भी जाना जाता है। यह गढ़वाल की रानी थीं , पौड़ी इनकी राजधानी थी।  श्रीनगर शीतकालीन राजधानी थी।  ये श्रीनगर जम्मू वाला नहीं यह गढ़वाल का श्रीनगर है।  रानी कर्णावती जिनको आपने सिर्फ किताबों में देखा है।  आप में से अधिकतर लोग जानते ही नहीं हैं।  अगर जानते भी हैं तो वो दूसरी रानी कर्णावती है। जो राणा सांगा की पत्नी हैं। आज का युवा इस वीरांगना से अनजान है।  इस वीडियो मैं हम हर एक पहलु को बताने की कोसिस करेंगे । ज्यादातर रजिया सुलतान , रानी लक्ष्मीबाई जैसे नाम ही चर्चाओं में हैं।

इनसे भी खतरनाक कोई रानी थी।  तो वो थी रानी कर्णावती उर्फ़ नाक कटी।  नाक कटी सब्द अपमानित सब्द है।  जिसे रामायण जैसे ग्रंथों में भी देखने को मिलता है। सूर्फणखा वाला किस्सा तो याद ही होगा आपको।   लेकिन यहाँ बिलकुल अलग है। 

गढ़वाल में और भी बिरंगनाएँ और रानियां हैं जैसे तिलु रौतेली , जिया रानी और उनमें से एक हैं रानी कर्णावती। गढ़वाल साम्राज्य की रानी कर्णावती परमार, जिन्हें टिहरी गढ़वाल के नाम से भी जाना जाता है, 17 वीं शताब्दी की एक भारतीय अभिजात थीं। वह गढ़वाल के राजपूत राजा महिपत शाह की पत्नी होने के लिए जानी जाती हैं, जिन्होंने शाह शीर्षक का इस्तेमाल किया था। और गढ़वाल में वे ‘गर्व भंजन’ के नाम से प्रसिद्ध थे। 

जब दिल्ली में शाहजहाँ शासन काल था।  तब उनको उत्तराखंड में एक ऐसे गढ़ का पता चला। जहाँ सोना, चांदी , हीरा बेहिसाब था।  और दिल्ली में 14 फ़रवरी के दिन 1628 मैं।  शाहजहाँ का राज्याभिषेक चल रहा था।  इसके लिए रानी कर्णवती के पति महिपत शाह को इन्विटेशन भेजा गया।  राजा ने भी उसको रिजेक्ट कर दिया।  अब रिजेक्शन को देख कर शाहजहाँ को गुस्सा आ गया।  और पहाड़ पर आक्रमण की योजना बनाने लगा। इस बात को कुछ दिन बीत गए और राजा महिपत शाह बीमार पढ़ने लगे।  जब महिपत शाह ने 1631 का युद्ध किया था उसमें वह घायल हो चुके थे। और फिर वह मृत्यु को प्राप्त हो गए। 

अब यहाँ शाशन करने वाला कोई नहीं था शिवाय रानी कर्णावती के। इस बात से मुग़ल और भी खुश हो गए थे। वह सोचते थे अब तो चित भी हमारी और पट भी।  वह इस बात से अनजान थे की मायावी पहाड़ को उखाड़ पाना इतना आसान नहीं है।  खासतौर पर महिलाओं के साथ लड़कर। वो भी ऐसी वीरांगना जिसके अदम्य साहस , वीरता का अंदाजा नहीं किया जा सकता है। 

इसी कड़ी में पडोसी राजाओं का भी खतरा रानी पर पड़ने लगा।  रानी कर्णावती एक बहादुर महिला योद्धा थीं। उन्होंने कुमाऊं, सिरमौर और तिब्बत से अपनी प्रजा की रक्षा की। अब ये सिरमौर का राजा बड़ा बेहरम था।  जिसने रानी कर्णावती की हर जानकारी मुगलों तक पहुंचाई।  और कुमाऊँ का राजा बाज बहादुर एक नंबर का चुगलखोर था।  इन्होने मुगलों से वादा किया पहाड़ों में लूटने के लिए बहुत कुछ है।  आप लूटिये हम आपका पूरा साथ देंगे। 

शाहजहां ने अपनी धौंस के चलते पहाड़ हड़पने का फैसला ले लिया था।   इसके पीछे अन्य भी कारण थे।   गढ़वाल की नदियां गोल्ड , कॉपर  और लेड जैसी बेसकीमती धातुओं से भरा पड़ा था। जिसमें भागीरथी ,अलकनंदा , सोना नदी शामिल हैं।  गढ़वाल के राजा सोने की थाली में ही खाना खाया करते थे। 

पहाड़ अशंख्या प्राकृतिक धरोहरों से खचा खच भरा है।  यह सब देख कर शाहजहाँ ने रानी कर्णावती को हलके में ले लिया।  और 1635 में नजावत खा को आदेश दिया। जाओ और पहाड़ पर कब्ज़ा करके आओ साथ ही रानी के चिथड़े उड़ाओ। जो काँगड़ा का मुग़ल गवर्नर था। निकोलस मनु ची के अनुसार - नजावत खां 1 लाख पैदल सैनिक , 30  हजार घुड़सवारों को फटा फट तैयार किया और निकल पड़े पौड़ी के लिए। 

रानी कर्णावती अधिकतर समाज सेवा करती थी।  उन्होंने में राजपुर, देहरादून का केनाल का निर्माण करवाया। जिससे देहरादून की सूरत बदल सकी। साथ देहरादून का करणपुर भी बसाया।  जहाँ आज दयानद एंग्लो वैदिक पी जी कॉलेज भी है। इसके अलावा अनेकों ऐसे कार्य हैं जिसके बारे में कुछ पत्ता नहीं है।  लेकिन संसय पैदा होता है।

रानी के जासूसों द्वारा खबर प्राप्त हुई।  की मुग़ल सेना ऋषिकेश लक्ष्मण झूला पहुँच चुकी है।  रानी ने भी अपने सलहकारों के साथ एक गुप्त मीटिंग बैठाई। जिश्में युद्ध को लेकर रणनीतियां तैयार किया गया।  गढ़वाली रानी ने उनको आगे बढ़ने दिया।  और मुग़ल सेना चलती रही।  युद्ध के बारे में लिखने वाले एक इतालवी यात्री मनुची के अनुसार, रानी ने नजाबत खान की सेना को आगे बढ़ने और पहाड़ों में कुछ दूर तक घुसने की अनुमति दी, जिसके बाद उन्होंने उनके आने के रास्ते बंद कर दिए थे।  

इस युद्ध के दौरान पहाड़ की भौगोलिक स्तिथि ने भी रानी का साथ दिया।  यहाँ के रास्ते संकरे , टेड़े मेढे रास्ते  , पहाड़ , चट्टान इत्यादि जिसे आप जानते ही हैं।   बेसिकली ऐसी सिचुएसन में ऐसा होता है की सेना को टुकड़ों में बाँट दिया जाता है।  जब एक टुकड़ी आगे चली जाये तो दूसरी फिर पीछे से आती है।

जब मुग़ल सेना नजाबत खा के नेतृत्व में आगे बढ़ी तो।  योजना के अनुसार उन्हें वहीँ घेर दिया गया और पहाड़ी से पत्थर गिराए गए।  धनुष बाण चलाये गए। जिससे हर जिहादी मुग़ल घायल होता गया।  और काफी मारे गए।  तब रानी कर्णवती ने एक massage भेजा।  

आपके पास दो रस्ते हैं।  पहला अपनी जान गँवा दो। और दूसरा अपनी नाक काट दो। इसके अलावा अब मुग़ल सैनिकों के पास कोई बिकल्प नहीं था।  नजाबत खान ने सैनिकों को आदेश दिया।  और सभी ने अपनी नाक कटवाई।  नक कटे सैनिक वापिस दिल्ली चले गए। फिर नजाबत कभी आगरा वापस नहीं पहुंचा। कुछ लोग कहते हैं कि उसने आत्महत्या कर ली। कुछ कहते हैं कि उसे साथी सैनिकों ने मार डाला।

इसके बाद सहजहां ने अरीज खां को भेजा वो भी नाकाम रहा फिर खलीलुल्लाह को भेजा लेकिन कोई भी श्रीनगर तक नहीं पहुँच सका।

इस हार के बाद सहजहां ने कभी गढ़वाल की तरफ मुड़कर भी नहीं देखा। 

और जरुरी बात यहाँ दी गई जानकारी का हम समर्थन नहीं करते हैं यह जानकारी इतिहासकारों और लेखों पर आधारित हैं।

Krishna Kumar journalist

कृष्णा कुमार, एक पत्रकार के रूप में, आप अपनी गहरी दृष्टि और सटीक रिपोर्टिंग के लिए जाने जाते हैं। आपने अपने करियर में अनेक सामाजिक, राजनीतिक, और आर्थिक मुद्दों पर महत्वपूर्ण लेखन और रिपोर्टिंग की है, जिसमें निष्पक्षता और संवेदनशीलता प्रमुखता से नजर आती है। पत्रकारिता के सिद्धांतों का पालन करते हुए, आप समाज को जागरूक करने और सटीक जानकारी पहुँचाने में योगदान दे रहे हैं, जिससे आपके पाठक घटनाओं की व्यापक समझ विकसित कर पाते हैं।

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