Mortgage loan क्या होता है।
जब कोई व्यक्ति विशेष अपनी जरुरत के लिए या अन्य किसी कारण से अपनी सम्पति को किसी बैंक या वित्तीय संस्थान के पास बंधक के तौर पर रखता है
और बैंक या वित्तीय संस्थान से कुछ धनराशि प्राप्त करता है अर्थात उधार लेता है तो उसे मॉर्गेज लोन कहा जाता है।
बंधक मुद्रा (Mortgage Money)
संपत्ति अधिनियम, 1882 की धारा 58 के अन्तर्गत मॉर्गेज लोन यानि बंधक रखना, गिरवी रखना आता है।
संपत्ति हस्तांतरण अधिनियम, 1882 भारत में अचल संपत्ति के बंधक से संबंधित है जब मूलधन और ब्याज जिसमें से भुगतान समय के लिए सुरक्षित हो जाता है
बंधक मुद्रा (Mortgage Money) कहलाता है।
और जिस उपकरण से स्थानांतरण प्रभावित होता है उसे बंधक विलेख (Mortgage Deed) कहा जाता है।
आम तौर पर वर्तमान संपत्ति मूल्य का लगभग 70% ऋण राशि के रूप में पेश किया जाता है।
Mortgage Loans कितने प्रकार के होते हैं?
भारत Mortgage Loans विभिन्न प्रकार के होते हैं जिनमे से कुछ सूची आपको निचे बता रहे हैं जो निम्नलिखित हैं।
संपत्ति के खिलाफ ऋण (Loan against Property) – LAP
संपत्ति के खिलाफ ऋण (Loan against Property) को आमतौर पर LAP के नाम से जाना जाता है।
वाणिज्यिक और आवासीय संपत्तियों के लिए Loan against Property की पेशकश की जाती है।
उधार लेने वाले संस्थानों से धन प्राप्त करने के लिए उधारकर्ताओं को अपनी संपत्ति को गिरवी रखना पड़ता है।
संपत्ति के मूल दस्तावेजों को ऋणदाता को उस समय तक जमा करना पड़ता है
जब तक कि ऋण पूरा नहीं चुका दिया जाता है। ऐसे ऋणों का पुनर्भुगतान EMI के आधार पर किया जाता है।
इन ऋणों की अवधि आमतौर पर 15 वर्ष तक होती है।
वाणिज्यिक खरीद (Commercial Purchase)
व्यवसायिक खरीद ऋण (Commercial Purchase Loan ) Businessmen और entrepreneurs का काफी प्रशिद्ध और लोकप्रिय लोन है
वे इस तरह के ऋणों को एक दुकान, अपना व्यवसाय सुरु करने, और वाणिज्यिक परिसर जैसी वाणिज्यिक संपत्तियां खरीदने के लिए लेते हैं।
इस ऋण से प्राप्त धन का उपयोग केवल संपत्ति खरीदने के लिए किया जाना है।
लीज रेंटल डिस्काउंटिंग (Lease Rental Discounting)
लीज रेंटल डिस्काउंटिंग (Lease Rental Discounting) हमारी अपनी आवासीय या व्यावसायिक संपत्ति को पट्टे पर देना एक बहुत ही आम बात है।
बंधक ऋण को लीज संपत्तियों के खिलाफ भी लिया जा सकता है।
इसे ‘लीज रेंटल डिस्काउंटिंग’ के रूप में जाना जाता है। मासिक किराया राशि स्वयं EMI में बदल जाती है और ऋण राशि उस आधार पर दी जाती है।